DIL TO BAVRA HAI

दिल तो बावरा है...


BY AMIT ANANT

ये दिल तो बावरा होता है।
ये दिल तो साँवरा होता है।
ये नही चलता किसी के कहने पे,
ये दिल तो मुहावरा होता है।।

      DIL TO BAVRA HAI...ये दिल तो बावरा है इसे प्रेम के शिवा कुछ नही दिखाई देता है इसे तो केवल प्रेम पता है बस....ये ... केवल महसूस करता है। हर वो वस्तु, हर वो भाव, हर वो हृदय, हर वो जीव, हर वो वृक्ष, हर वो साँसे... जिसमे प्रेम रहता है...जिसमे अथाह खुशी हो...जिसमे कोई स्वार्थ ना हो...जिसमे कोई लोभ नही हो.... जिसमे केवल प्रेम ही प्रेम हो...ऐसे ही चीजो को,जीवो को, ऐसे ही सांसों को यह महसूस करता है...ये तो फूलों में आनन्दित होता है....ये तो सुंदरता में आनन्दित होता है......ये तो पौधों में आनंदित होता है.... ये तो पक्षियों की बोली में आनंदित होता है....ये तो संगीत में आनंदित होता है....ये तो तितलियों एवं भवँरो में आनन्दित होता है...ये तो हवाओ में, लताओ में,नदियों में,धूप में,चाँदनी रात के चाँद में,हरे भरे बगीचे में,खेत खलिहानों में, मंदिर के शंखनादों में,बारिश की बूंदों में, उड़ते धूलो में,महकते फूलों में,झूलते झूलो में,हर जगह में महसूस करता है।
         DIL TO BAVRA HAI...ये तो भाव का भूखा होता है... समर्पण का भूखा होता है.....लोगों के मिठास का भूखा होता.....भक्ति भाव का भूखा होता है.....इसमें कोई दोष नही होता....इसमें कोई रोष नही होता....इसमें कोई लोभ नही होता ...इसमें कोई मोह नही होता... इसमें कोई क्रोध नही होता... इसमें कोई छल कपट नही होता.....ये हरदम अपने आप मे आनंदित रहता है.....अपने आप मे मस्ती में रहता है.... लोग.. प्रेम को बाहर खोज रहे है... बाहर मत खोजो .... अपने भीतर महसूस करो......यह तो.... हरदम ...तुम्हे खुश रखता है....तुम्हारे लिए सब कुछ करता है....परन्तु....तुम ही....स्वार्थी बन जाते हो.....थोड़ा सा...महसूस हुआ....तो तुम्हे लगा......की बस....अब तो....जिस पर महसूस हुआ...वो तुम्हारा है.....और स्वार्थी बन गए.... अब जहाँ पर स्वार्थ का जन्म हुआ....वहाँ... प्रेम की मृत्यु हो गई.... फिर हृदय में पीड़ा शुरू हो गयी......क्यों कि हृदय के प्रेम को महसूस .... करने कहाँ दिया .....भूल गए ... कि.... हृदय कुछ महसूस करके ....आप को आनंदित कर रहा था...हृदय को समझो ये दिल ही तो जो बावरा होता है .... और ऐसे दिल वाले को... हरदम लोग पागल ही समझते है।.... हाँ पागल समझना भी चाहिए....क्यों कि  दिल तो दिल ही है... और दिल तो जहां मर्जी, जिससे मर्जी,उसमे वो लग ही जाता है।उसको रोकना मुस्किल ही नही......बल्कि असंभव होता है।
          DIL TO BAVRA HAI...इस दिल को क्या चाहिए, केवल प्रेम भाव को भूखा होता है...जहाँ से दिल को प्रेम एवं खुशी मिली वही ये दिल....दिवाना हो जाता है...वही ये झूमने लगता है... वही ये ठहर जाता है...और वही का हो के रह जाता है...तभी तो दिल बावरा हो जाता है....पागल हो जाता है... परन्तु दिल सदैव सत्य प्रेम की तलाश में होता है...और जहां सच्चा प्रेम बिना स्वार्थ वाला मिलता है वही इसको आनन्द मिलता है...और जहाँ ये आनन्दित होता है... वहीँ महसूस करना...तुमको आनंदित करता है...ध्यान से जब समझेंगे तो पाएंगे कि सच मे यह दिल बावरा होता है।


     DIL TO BAVRA HAI...प्यारे साथियों हमारा लेख दिल तो बावरा है कैसे लगा बताये की कृपा करें और साथ मे अपना शुभाशीष देने की कृपा करें। 
धन्यवाद

@Amit anant
       Delhi

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